जब तक इस्लाम है. आतंकवाद बना रहेगा, लेखिका तस्सलीमा नसरीन

दिल्ली साहित्य महोत्सव में लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम और उससे जुड़े सामाजिक पहलुओं पर खुलकर अपनी राय रखी।
उन्होंने कहा कि इस्लाम पिछले 1,400 वर्षों में कोई विकास नहीं कर पाया है और जब तक इसमें बदलाव नहीं आता, यह चरमपंथियों को जन्म देता रहेगा।
उन्होंने 2016 के ढाका हमले का जिक्र करते हुए कहा कि उस हमले में कुछ मुसलमानों को इसलिए मारा गया क्योंकि वे हमलावरों के कहने पर ‘कलमा’ नहीं पढ़ पाए थे।
उनका कहना था कि जब आस्था को तर्क और मानवता पर हावी होने दिया जाता है, तो इसके परिणाम हिंसक हो सकते हैं।
उन्होंने हाल ही में हुए पहलगाम हमले की ओर भी ध्यान दिलाया, जहां बायसरन में आतंकवादियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी थी।
चश्मदीदों के अनुसार, हमलावरों ने लोगों से इस्लामी आयत या ‘कलमा’ पढ़ने को कहा, और जो ऐसा नहीं कर सके, उन्हें गोली मार दी गई।
जिहादी मानसिकता को बढ़ावा है मस्जिद्दे
तस्लीमा नसरीन ने धार्मिक कट्टरता की आलोचना करते हुए कहा कि दुनिया भर में पहले से ही हजारों मस्जिदें मौजूद हैं, फिर भी कुछ लोग लगातार और मस्जिदें बनाना चाहते हैं। उनके अनुसार, इस प्रयास के पीछे धार्मिक कट्टरता और जिहादी मानसिकता को बढ़ावा देना छिपा है।
उन्होंने कहा कि जब तक इस्लाम की आलोचना और सुधार की गुंजाइश नहीं होगी, आतंकवाद जैसी समस्याएं बनी रहेंगी।
उन्होंने मदरसों की भी आलोचना की और कहा कि बच्चों को केवल एक धार्मिक किताब नहीं, बल्कि हर तरह की किताबें पढ़नी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिका में दस साल रहने के बावजूद उन्हें हमेशा एक बाहरी व्यक्ति जैसा महसूस हुआ, लेकिन भारत, खासकर कोलकाता और दिल्ली ने उन्हें अपनापन दिया। नसरीन ने भारत को अपना ‘घर’ बताते हुए इसके प्रति प्रेम जताया।
यह रहा तस्लीमा नसरीन के विचारों पर आधारित एक ब्लॉग पोस्ट का पूरा ड्राफ्ट, जो सूचनात्मक और विश्लेषणात्मक दोनों है।
“तस्लीमा नसरीन का इस्लाम पर बयान: धर्म, तर्क और समाज की कठोर सच्चाइयाँ”
साहित्य महोत्सव में बांग्लादेशी मूल की प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन ने एक बार फिर अपने विचारों से बहस को जन्म दिया।
उनकी बातें धर्म, समाज, मानवता और महिलाओं के अधिकारों पर आधारित थीं—साहसिक, स्पष्ट और कई लोगों के लिए असहज करने वाली।
इस लेख में हम उनके प्रमुख बयानों का सार समझते हैं और उनके पीछे के विचारों की गहराई में जाते हैं।
इस्लाम में सुधार की आवश्यकता
तस्लीमा नसरीन ने कहा कि इस्लाम पिछले 1,400 वर्षों में कोई भी बुनियादी सुधार नहीं ला सका है। उनका मानना है कि जब तक इस धर्म में आत्म-आलोचना और विकास की गुंजाइश नहीं बनती, तब तक यह आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा।
ढाका हमला और ‘कलमा’ की त्रासदी
2016 के ढाका हमले का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि वहां कुछ मुसलमानों को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे ‘कलमा’ नहीं पढ़ पाए। यह कट्टरता का एक वीभत्स उदाहरण है कि कैसे आस्था का गलत उपयोग करके निर्दोषों की जान ली जाती है।
पहलगाम हत्याकांड और धार्मिक पहचान
22 अप्रैल को बायसरन, पहलगाम में हुए हमले में आतंकवादियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावरों ने लोगों से इस्लामी आयतें पढ़ने को कहा और ऐसा न करने वालों को गोली मार दी। नसरीन ने इसे धार्मिक उत्पीड़न का खतरनाक संकेत बताया।
मस्जिदों का विस्तार बनाम सामाजिक संतुलन
तस्लीमा ने कटाक्ष किया कि जब यूरोप में चर्च संग्रहालय बनते जा रहे हैं, तब मुस्लिम समाज नई मस्जिदों के निर्माण में व्यस्त है। उनका मानना है कि यह धार्मिक कट्टरता को और मज़बूत करता है।
‘मदरसे नहीं होने चाहिए’
उनकी एक विवादास्पद टिप्पणी यह रही कि मदरसे नहीं होने चाहिए। उनका विचार है कि बच्चों को केवल धार्मिक ग्रंथों तक सीमित न रखकर हर विषय पढ़ाया जाना चाहिए, जिससे उनमें तर्क और वैज्ञानिक सोच का विकास हो।
भारत में अपनापन है
उन्होंने यह भी साझा किया कि अमेरिका में दस वर्षों तक रहने के बावजूद उन्हें वहां कभी अपनापन महसूस नहीं हुआ। भारत, खासकर कोलकाता और दिल्ली ने उन्हें वह सम्मान और स्नेह दिया, जो उनका अपना देश, बांग्लादेश नहीं दे सका।
बांग्लादेश में महिलाओं की स्थिति
बांग्लादेश की स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुए तस्लीमा ने कहा कि वहां महिलाओं को अभी भी बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाता है, जो एक सभ्य समाज की असफलता को दर्शाता है।
समान नागरिक संहिता का समर्थन
तस्लीमा ने भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने की ज़ोरदार वकालत की। उन्होंने कहा कि अधिकार धर्म या परंपरा के आधार पर नहीं, बल्कि नागरिकता और मानवता के आधार पर तय होने चाहिए।
संस्कृति पर सवाल ज़रूरी है
उनका यह भी कहना था कि अगर किसी संस्कृति या परंपरा के नाम पर महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों से समझौता होता है, तो ऐसी संस्कृति को चुनौती देना चाहिए।
“भारत मेरा घर है”भारत से मुझे प्यार है.
अपने भावनात्मक संबोधन के अंत में उन्होंने कहा, “मुझे भारत से प्यार है। यह घर जैसा लगता है।” यह वाक्य दर्शाता है कि भारत ने एक निर्वासित लेखिका को वह अपनापन दिया है, जो उनका अपना देश नहीं दे सका।
तस्लीमा नसरीन की बातें सिर्फ आलोचना नहीं, एक आत्ममंथन का निमंत्रण हैं। उनके विचार कट्टर धार्मिक सोच के खिलाफ एक खुली बहस की जरूरत को रेखांकित करते हैं।
चाहे कोई उनके विचारों से सहमत हो या नहीं, उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। समाज को आत्मचिंतन करने की ज़रूरत है कि क्या वह मानवता, तर्क और समानता को तरजीह दे रहा है या फिर अंधविश्वास और पितृसत्ता को।
बांग्लादेश की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वहां महिलाओं को आज भी बुनियादी अधिकार नहीं मिलते।
बांग्लादेश की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि वहां महिलाओं को आज भी बुनियादी अधिकार नहीं मिलते।
उन्होंने भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने का समर्थन करते हुए कहा कि अधिकार किसी धर्म पर आधारित नहीं होने चाहिए। उनका मानना है कि यदि किसी संस्कृति या परंपरा के नाम पर महिलाओं की सुरक्षा से समझौता किया जाता है,
तो उस संस्कृति पर सवाल उठाया जाना चाहिए। उनके अनुसार, जो समाज अपनी आधी आबादी की रक्षा नहीं कर सकता, वह एक असफल समाज है।